Wednesday, April 12, 2023

‘नेहरू’ ही क्यूं आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, सरदार पटेल क्यूं नहीं!

 आज भी राजनैतिक मुद्दों में यह प्रश्न अपनी अहम भूमिका निभाता है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे एक बेहतर ‘मध्यस्थ’ और ‘व्यवस्थापक’ के रूप में नेतृत्व करने वाला नेता, प्रथम प्रधानमंत्री क्यूं नहीं बन सका या महात्मा गांधी जी ने उन्हें कांग्रेस के अध्यक्ष के पद से क्यूं नामांकन के लिए रोका| यह तो केवल बापू ही कर सकते है|



3.1: कांग्रेस कार्य समिति की बैठक –


द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब अंग्रेजी हुकूमत भारत में अपना दम तोड़ चुकी थी| तब आजादी से 1 वर्ष पहले देश की सरकार की बागडोर लेने के लिए 29 अप्रैल सन 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई| जिसमें पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाना था इस बैठक में महात्मा गांधी के अलावा राजेंद्र प्रसाद, अब्दुल गफ्फार खान के साथ कई बड़े कांग्रेसी नेता शामिल है|


इस समय कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कमेटियां करती थी| 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित किया था| बची हुई तीन कमेटियों ने आचार्य जे बी कृपलानी और बी पी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया|


परंतु गांधी जी ने नेहरू के लिए मन बना लिया था| अब इस अध्यक्ष पद के दो उम्मीदवार थे, एक नेहरू और दूसरे पटेल|


नेहरू तभी निर्विरोध अध्यक्ष चुने जा सकते थे, जब पटेल अपने नाम की वापसी ले| उस समय गांधी जी ने पटेल की ओर देखा फिर नेहरू की ओर और कहा, "जवाहर वर्किंग कमिटी के अलावा किसी भी प्रांतीय कांग्रेसी कमेटी ने तुम्हारा नाम नहीं सुझाया है, तुम क्या कहना चाहोगे?" 


नेहरू खामोश रहे! पटेल ने अपना नाम वापस ले लिया और इस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नेहरू जी को चुना गया| 


इस घटना का जिक्र हमें कृपलानी जी द्वारा लिखी , 'गांधी: हिज लाइफ एंड थॉट' में मिलता है|


3.2 गांधीजी ने नेहरू को ही आगे क्यों बढ़ाया ?


जब दुर्गादास (वरिष्ठ पत्रकार) जी ने यह सवाल गांधी जी से पूछा, तो गांधीजी ने कहा कि "नेहरू बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अंग्रेजी हुकूमत से बेहतर तरीकों से अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय संबंध में वार्ता कर सकते है|" 


गांधीजी ने हंसकर कहा कि, " जवाहर हमारे कैंप में अकेला अंग्रेज है|" 


जब उन्हें लगा कि पत्रकार दुर्गादास इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुए तो उन्होंने कहा कि, "नेहरू अंतरराष्ट्रीय विषयों को पटेल के मुकाबले अच्छा समझते हैं| यह दोनों सरकारी बैलगाड़ी को खींचने के लिए दो बैल है| अंतरराष्ट्रीय कार्यों के लिए नेहरू तथा राष्ट्रीय कार्यों के लिए पटेल एक अच्छी भूमिका निभाएंगे|"


गांधीजी ने नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष चुनने के कई कारणों को बताया परंतु ना उनसे किसी ने इस पर प्रश्न किया और ना ही उन्होंने इन कारणों का कोई स्पष्टीकरण दिया||


गांधीजी का नेहरू के लिए इस प्रकार सोचना सही भी था क्योंकि उस समय बाहरी दुनिया में नेहरू की चर्चा होती थी| लंदन के कहवा घरों में बुद्धिजीवियों के बीच तथा तमाम वायसरॉयो जैसे कि क्रिप्स आदि में नेहरू चर्चों का केंद्र बनते थे|


3.3 इस फैसले पर गांधी जी की आलोचना -


गांधी जी के इस फैसले के लिए उन्हें तब और अब भी आलोचनाओं में होकर गुजरना पड़ता है| जैसे कि-

(१) दुर्गादास की किताब 'इंडिया फ्रॉम कर्ज़न टू नेहरू' में लिखा है कि, "राजेंद्र प्रसाद ने मुझसे कहा कि गांधी जी ने ग्लैमरस नेहरू के लिए अपने विश्वसनीय साथी का बलिदान कर दिया|" हालांकि गांधी जी का इस पर प्रतिक्रिया हंस कर देने वाली थी| 

(२) वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी, "देश में कांग्रेस के नेतृत्व करने के लिए चुनाव हुआ जिसमें 15 में से 12 प्रांतीय कमेटियां कांग्रेस ने सरदार वल्लभभाई पटेल को चुना था| उसके बावजूद भी नेतृत्व सरदार वल्लभ भाई पटेल को नहीं दिया गया,वह कौन सा लोकतंत्र था? अगर देश के प्रथम प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल होते तो कश्मीर हमारा होता|" (लोकसभा में मोदी जी)


3.4 सरदार पटेल भारत के लौह पुरुष -


सरदार वल्लभ भाई पटेल जिन्होंने भारत को एकजुट किया| जब अंग्रेज भारत छोड़ रहे थे, तब 562 रजवाड़ों में सिर्फ तीन को छोड़कर विलय का फैसला लिया| यह तीन रजवाड़े थे कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद वह सरदार भाई पटेल ही थे| जिन्होंने पूरे भारत को एक किया|


वैसे भारत के लिए एक उत्तम प्रधानमंत्री पद के लिए उत्कृष्ट प्रखर सेनानी थे|


जब 30 जनवरी सन 1948 में महात्मा गांधी के निधन हुआ| तो पूरे राष्ट्र में एक दुखद और राजनीति के सौरमंडल में रोशनी को देने जैसा था|


तब सरदार भाई पटेल एक सूरज की भांति सामने आए और उन्होंने कहा की, "गांधी हमारे मार्गदर्शक हैं और हम उनके सिपाही और अब हमारा नेतृत्व जवाहरलाल नेहरु करेंगे अब हम गांधी जी के द्वारा प्रस्तावित मार्ग पर चलेंगे|"


यदि वल्लभभाई पटेल को उस समय कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बैठा भी दिया जाता तो भी आजाद भारत के 3 साल बाद ही हमें अपना प्रथम प्रधानमंत्री दुर्भाग्यवश खोना पड़ता|


लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल बादलों के पीछे सूरज के भारतीय थे| उनका नाम देश में महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस इत्यादि नेताओं की भांति ही अमर और अविस्मरणीय रहेगा|


यहां महात्मा गांधी ‘द्रोणाचार्य’, जवाहरलाल नेहरु ‘अर्जुन’ और सरदार वल्लभभाई पटेल ‘एकलव्य’ जैसे प्रतीत होते है|

 

-टीम युवा आवेग    

   (दीक्षा यादव) 

 


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16 comments:

  1. Great work 🔥

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  2. This so informative and an eye opener for today's youth and general public. This should be spread to have balance information and opinion towards our history and what was actually happened. There should be debate around this topic so that the youth can understand the situation of that era and the reason behind such an approach by Mahatma Gandhi.
    The write up is quite balanced and to the point.

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    1. Thanks for the appreciation 😊

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  3. बेहतरीन!

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  4. It is well written.. We should talk on every issue, we should know all the aspects.

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  5. Good analysis.... You should have told a little about Nehru ji. He kept the country running even without leaders like Gandhi ji and Sardar Patel. But according to the topic you have written well👏

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  6. Informative 👏👏

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  7. Great!! Keep it up...

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  8. Interesting topic 👌

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  9. Very nice topic👌

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